*1521. न्हा हंसा न्हा हंसा।।666।।
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न्हा हंसा न्हा हंसा, घटमें अड़सठ धार तूँ मलमल न्हा हंसा।।
विषय गन्ध की चढ़ रही गारा, मैला ढूंढ बना लिया सारा।
गुरू मुख डुबकी ला। तूँ मलमल न्हा।।
गाफिल नींद नशे ने घेरा, लुट रहा ढूंढ तनै ना बेरा।
तूँ चेतन तार बजा हंसा।।
ठाले शस्त्र गुरु ज्ञान का, करले सुमरन रामनाम का।
यो अवसर चुका जा।।
मूर्ख बदी करन तैं डरले, कुछ तै कालबली तैं डर ले।
तनै एक दिन खा।।
धर्मराज की लगै कचहरी, देगा कौन गवाही तेरी।
मिलती तनै सजा।।
रामकिशन या तेरी मजूरी, हरि भजन से होगी पूरी।
ना वृथा जन्म गवाँ।।
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