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440। तूने सिमरा न हरि नाम इस मोह माया के चक्कर में 188।।

433. हे माया ठगनी है तूने लूट लिया जग सारा 186।।

बाकी शब्द

      429.   433.   440.     455.    489.     505.    518.    519.   553.   572.   593.    594.   661.   680.  688.   691.   740.   745.   772.    811.   816.   820.   825.   826=827=828.829=830=831.  833=834=835=837=838=839.   841.  842.  851.  864.  894.   906.   924.   952.   955=956=963.   965.  101 4.   1042.   

429 दुख पावेगा बंदे मोह के जाल में गिर के।।184।।

 

*1044। शब्द मत छोडो रे शब्द के हाथ ना पाऊं 468।।

शब्द मत छोडियो रे शब्द के हाथ ना पांव।। दाहिने हाथ को शब्द सुनो और चढ़ जा ऊंची धार। शब्द विवेक साधु उतरे भवसागर के पार।। बिना शब्दके साधु फिरते मूर्ख मूढ़ गवार। शब्द विवेक की साधु के पांव पूजो बारंबार।। शब्द से पोथी पुस्तक रचीया वेद रखे हैं चार। बिना शब्द के कुछ भी नाहीं देखा सोच विचार।। गुरु ताराचंद था भोला भाला, शब्द बिना लाचार। सतगुरु राम सिंह पुर मिल गए खोल दिए भंडार।।

*1043 जिनके लगी शब्द की सेल घायल वो ना जीवे।।

जिनके लगी शब्द की सेल घायल वो ना जीवे।। लागी लागी सभी कहे रे लागी ना है एक। लागी उनके जानिए रे जो करे कलेजे छेक।। लगी लगी सभी कहे रे, लगी बुरी बलाए। लगी तो तब जानिए जब आर पार हो जाए।। लगी उनके जानिए रे राज तजे अलबेल। अंदर दीवा जल रहा रे घला है प्रेम का तेल।। पढ़ना लिखना है नहीं रे यह सतसंगत का खेल। चार वेद घट में बसें रे पूरे गुरु का मेल।। जग में सत्संग सार है रे जो काटे जम की बेल। कहे कबीर सुनो भाई साधो झूठा जग का मेल।।